प्रीत का रंग भरो सजनी…..
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गए बीत दिवस जाने कितने,जाने कितनी बीतीं रजनी।
मेरे इस नीरस जीवन में,निज प्रीत का रंग भरो सजनी।
अंतर की नीरस वादी को,तुम प्रेम-पगी हरियाली दो।
उर के इस उजड़े उपवन को,तुम एक चतुर-सा माली दो।
निस्तेज पड़े इन अधरों को,अधरामृत से सञ्चित कर दो।
बेरंग हुए इस जीवन में,जग-भर की सब खुशियाँ भर दो।
जीवन पथ घोर अँधेरा है,तुम बन के मेरी मशाल चलो।
आतुर हो रणभूमि मांगे,तो बन फौलादी ढाल चलो।
सर मातृभूमि के हो निमित्त,मुझको मत लेना रोक प्रिये।
हो खेत कहीं जाऊँ मैं तो,तुम भी मत करना शोक प्रिये।
यदि दुःख का समय कोई आए,रहना तुम मेरे साथ सदा।
आलम्बन रहे तुम्हारा तो,नहीं मुझे सता सकती विपदा।
मैं गाउँ राग-मधुर तो तुम,बन ताल मेरे संग नृत्य करो।
मन की मन में न रह जाए,इस अर्धसत्य को सत्य करो।
जीवन के हानि-लाभ झेल, मैं संग तुम्हारे सह जाऊँ।
नयनों के ‘तेज’ बहावों में,किसी तिनके-सा न बह जाऊँ।
तेरे बिन ये दुनियाँ सूनी,मुझको हर हाल पड़े तजनी।
मेरे इस नीरस जीवन में,निज प्रीत का रंग भरो सजनी।
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