प्रीति
आत्मीय प्रेम मे अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होती
खोने का डर सतता है पाने की चाहत नहीं होती
वो सामने आ जायें तो जुबां सिल सी जाती है
नजरें घबराहट मे छुपने का ठिकाना तलाश करती हैं
धड़कने सासों से मिल जुगलबंदी सी करने लगती हैं
दिल मे सितार के संग बांसुरी बजने लगती है
सर से लेकर पाँव तक भीगा तन-बदन हो जाता है
ओस मे भीगे कंवल सा मन तर-बतर हो जाता है
यही वो प्रीत है जिसमे मीरा के गीत बसते हैं
यही वो प्रीत है जिसमे राधा के मीत बसते हैं
दौर बदले के जमाना ये मेयार तंग नहीं होगा
ये प्रीत का मेयार है ये मेयार कम नहीं हो
(सर्वाधिकार सुरक्षित स्व रचित मौलिक रचना)
M Tiwari”Ayan”