प्रीतम मनाया न गया
*** प्रीतम मनाया न गया ***
***** 222 2122 112 ***
******** ग़ज़ल **********
उजड़ा उपवन उगाया न गया,
रूठा प्रीतम मनाया न गया।
बिखरे मोती जड़े जो मनके,
फिर से उनको मिलाया न गया।
गहरी सी नींद में लीन सदा,
सोयों को भी जगाया न गया।
ना जाने कौन था मार्गदर्शक,
मिथ्या रास्ता हटाया न गया।
झट से तोड़ी कमर ही उनकी,
उखड़ी जड़ को जमाया न गया।
छोड़ा दामन न ही बात कही,
यारों को भी बताया न गया।
मनसीरत ने कहा ठीक सदा,
उजड़े तल से बसाया न गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)