प्रीतम दोहावली
मन-मंदिर में प्रेम का, जला लीजिये दीप।
जगमग जग फिर देखिये, अपने हृदय समीप।।//1
सीधी बातें भी अगर, समझ न पाओ आप।
हर दर पर आपको, मिले सिर्फ़ संताप।।//2
शुद्ध भजन हरि लीक है, और प्रदर्शन जाप।
बुत की पूजा छोड़कर, पूजो आत्मा आप।।//3
भ्रमित मन समझे सदा, ख़ुद को ही भगवान।
फूला मूर्ख पनीर है, भूल दूध पहचान।।//4
जिसकी जैसी सोच है, उसका उतना मान।
बादल बिजली संग में, पाएँ अंतर गान।।//5
पहले ख़ुद फिर और को, समझे पाए जीत।
शूल हुआ तो क्या हुआ, बने फूल का मीत।।//6
बूँद-बूँद से जब मिले, लेती सागर रूप।
प्रजा वोट हों एक जब, करें आम को भूप।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’