प्रीतम के दोहे
गुरु का आशीर्वाद हो, कुछ पाने की लग्न।
गंतव्य मिले एक दिन, पाकर मन हो मग्न।।//1
आदर से आदर मिले, लिए बढ़ो यह सीख।
कभी निरादर को यहाँ, मिले न सुख तारीख़।।//2
भूल कभी मत कीजिये, हुई करो स्वीकार।
तभी तुम्हारा हो यहाँ, दिल से नित सत्कार।।//3
शिक्षा तोड़े हीनता, जोड़ ज्ञान के तार।
स्वप्न लिए जो आपने, करती वह साकार।।/4
सीख-सीखकर सीखिये, बनिए सदा सुजान।
रीति यही संसार की, मिले ज्ञान को मान।।//5
दंभ कभी मत कीजिये, धुमिल करे यह शान।
प्रेम शील अरु ज्ञान से, मिले जीत सम्मान।।//6
ग़म कड़वे पर हैं दवा, पीकर करो इलाज़।
कमल पंक में जब खिले, करे ज़माना नाज़।।//7
आर.एस. ‘प्रीतम’