#रुबाइयाँ
#रुबाइयाँ
जिसने अत्याचार सहा है , ख़ून जिग़र खोला होगा।
लाचारी ने मौन किया है , दिल उसका बोला होगा।।
दिल की चीखें सुनकर रब भी , न्याय हमेशा किया करे ;
अत्याचारी चिंगारी का , दंड लिखा शोला होगा।।
लहू बहाओ मत शोषण कर , दूषित मन कब फलता है।
छिपने की जगह नहीं मिलती , रब का कौड़ा चलता है।।
आज ख़ुशी है शोषक को पर , कल ख़ुद को ही कोसेगा;
समय एक-सा कब रहता है , पलपल रंग बदलता है।।
धनवान हुये कंगाल यहाँ , रंक बने वैभवशाली।
धूप-छाँव-सा खेल ज़िंदगी , सुख-दुख की क्या रखवाली?
पर भ्रम मानव पर हो हावी , समझ- शक्ति छीना करता;
दंभ प्रदर्शन छल पाप भरे , नाच नचाए दे ताली।।
#आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित रुबाइयाँ