प्रिय मुझे तुम पास में आने न देना !
प्रिय मुझे तुम पास में आने न देना
पास मैं आऊं अगर तुम दूर से ही रोक देना
रोक देना रोक देना रोक देना रोक देना
पास आने से बढ़ेगी प्रीत की पीड़ा घनेरी
पीर तुम जगने न देना दर्द तुम बढ़ने न देना
मैं तुम्हें मांगूँगा तुमसे और कहूंगा तू है मेरी
तू मुझे सद्ऱाह पर लाकर नया एक मोड़ देना
प्रिय मुझे तुम पास में आने न देना
मोड़ से मुड़कर अगर मैं फिर पुरानी रह देखूं
रह तेरे घेर जो जाये उस तरफ निगाह फेंकूं
या कोई सौगंध देकर मैं तुम्हें फिर मांग बैठूं
राह तुम वो छोड़ देना हर कसम तुम तोड़ देना
प्रिय मुझे तुम पास में आने न देना
स्वप्न में भी मैं कहीं भूले से तुमको दूँ दिखाई
या किसी ने छेड़कर के याद फिर मेरी दिलाई
या हमारी प्रीत ने ही फिर खलिश दिल में मचायी
स्वप्न को तुम तोड़ देना बात का रुख मोड़ देना हर खलिश तुम छोड़ देना
प्रिय मुझे तुम पास में आने न देना