प्रिय, बीत गये मधुमास….
प्रिय, बीत गये मधुमास….
सावन आए, बरसे बरस गए,
व्याकुल नैना, दरस को तरस गए ,
तन भीगे, भन भीगे,
फिर भी भीगी न मन की प्यास…
प्रिय, बीत गये मधुमास….
1 . बीता दिन, बीत गई रैन ।
विरह में रोयें, घायल नैन ।।
कोयल आई , आये पपिहरा।
भाए न मन को, कोई भी जरा ।।
सब आए , बस, तुम नहीं आए…
एक बार फिर से मर गई
मरणासन्न मन-आस….
प्रिय, बीत गए मधुमास…
2. नागिन बन , डस रही बदरिया ।
बूॅदे लगे , बैरन है संवरिया।।
रंग रंगीली ये हरियाली।
सौतन सी लगती है साली।।
मन की व्यथा, सानिध्य की चाहत …
जानते प्रियतम काश…
प्रिय, बीत गए मधुमास…
3. माना कि वह , क्षणिक आलिंगन।
बाहों के बंदनवारें और अधरों का अनुपम
अभिनंदन।।
जैसी बाढ़ की भूखी नदियॉ।
जानती हैं बाढ़ के बाद की घड़ियां।।
फिर भी बाढ़ में बहने को आकुल ।
खुद को मिटा, कुछ पाने को व्याकुल।।
भले हो जाए सर्वनाश…
प्रिय, बीत गए मधुमास…..
4. सांस -सांस करती है वंदन,
रोम-रोम करते अभिनंदन।
जगा न पायीं , लटों की दस्तक।
हारे आसरे, हों नतमस्तक।।
आशाएं हो गई सतरंगी …
बाहों में आकाश…
प्रिय, बीत गए मधुमास…
* ये मैं ही हूँ…