प्रिय बादल तुम आ जाओ, तन-मन की प्यास बुझा जाओ
प्रिय बादल तुम आ जाओ, ये धरती बहुत ही प्यासी है
तुम बिन जन जन के मन में, गहरी छाई उदासी है
सूनी अखियां बाट जोहतीं, बदरा तुम कब आओगे
आग लगी है तन मन में, कब आकर आग बुझाओगे
तुम बिन सूख रही हैं फसलें, जंगल भी जल के भूखे हैं
तड़प रहे पशु पक्षी तुम बिन, गर्मी के तेवर तीखे हैं
बुला रही हैं नदियां तुमको, सरोवर कुएं बावड़ी रीते हैं
कैसे काट रहे दिन तुम बिन, नैंनो के आंसू सूखे हैं
कभी-कभी आते हो तुम, आशा विश्वास जगाते हो
गरज चमक कर बिन बरसे, कहां चले जाते हो
इसीलिए कुछ लोग तुम्हें, आवारा बादल कहते हैं
उड़ जाते हो संग हवा के, हम ताकते रह जाते हैं
कितने तुम मनमौजी हो, कहीं कहीं फट जाते हो
जो जद में आ जाए तुम्हारी, तुरंत बहा ले जाते हो
कहीं-कहीं इतने बरसे, उफन पड़ीं नदियां सारी
घुस आंई वह गांव शहर में, सांसत में जान हमारी
इसीलिए कहती हूं तुमसे, मेरे घर आंगन बरसो
नाचे मोर पपीहा प्यासा, जिय की जलन शांत कर दो
सुरेश कुमार चतुर्वेदी