प्रिय को मनाना
न करती तुम बात
ओर न ही मुलाकात ,
क्यों रूठी हो हमसे
बिन नही ढलती रात।
बता दो जरा हमसे
क्या हो गई भूल
दूर है हम तुमसे
पर रखते बबूल।
माह फरवरी का
बोल चला आया
पत्ते पतझड़ के
बिखर कर आया।
न ठंडी न गर्म हवा
सुहाना है यह मौसम
मिलने को तरसे यह जवां।
भूलो तुम खरी खरी बातों को
हम भी भूले है तुम हमे क्या बोली
खेलेगे हम तुम इस मौसम में
जो ले आए परात रंगों की होली ।
✍प्रवीण शर्मा ताल