प्रिय प्रेयसी।
याद है मुझे हर बात प्रिय,
जो थी तुमने मुझसे कही,
कम ही रही हर बात प्रिय,
जो प्रशंसा में तुम्हारी मैंने कही,
हंसती- छेड़ती तुम मुझको प्रिय,
अपने आप में ही इतराती रही,
रूठ जाती थी तुम अकारण ही प्रिय,
मेरी कविताएं तुम्हें मनाती रहीं,
ना था कोई राज़ ना पर्दा प्रिय,
कुछ हक तुम ऐसे जताती रही,
है आज भी सब कुछ वैसा ही प्रिय,
मेरी आँखों से जो तुम देखो तो सही।
कवि-अंबर श्रीवस्तव।