प्रिये
क्षितिज के आगे चलने का यदि साहस है तो चलो प्रिये
जीवन की तरह मेरा प्रेम कोई अस्थायी नहीं है खेल प्रिये।
मन में तुम्हारें किसी त्रासदी का यदि भय नहीं है मेरी प्रिये
यदि नियति का फेर तुम्हें ना अंधेर लगे तो आओ प्रिये।
बड़ा कठिन है प्रेम का पथ तुम्हें कह देता हूँ सुनो प्रिये
यहाँ व्यथा, वेदना और विरह के मेघ मिलेंगें अनेक प्रिये।
एक अंतिम बार अन्वय करता हूँ ध्यान लगाकर सुनो प्रिये
विक्षुब्ध कोई यायावर हूँ मेरे पथ है शूलों से भरे प्रिये।
यह सात जन्मों का चक्र हैं मेरे सात जन्मों में टीस प्रिये
तुम राजमहल की छाया में पली और मैं हूँ संताप प्रिये।
यद्दपि है तुमको प्रेम तथापि सुन लो मेरी विनती प्रिये
मेरे रक्त में है कालकूट मेरा जीवन समुद्र मंथन प्रिये।
ताहम हँसते हुए जीवन की पीड़ा सह लोगी तो चलो प्रिये
मेरी छोटी सी कुटिया में तुम रह लोगी तो हाँ चलो प्रिये।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’