प्रिये
“तुझे देख मन हुआ बावरा, रूप तेरा चित्त चोर प्रिये,
मैं काली रात अमावस की, तू उजली सी भोर प्रिये, मद्धम मद्धम सी मुस्काती,पवन के झोंकों सी लहराती,
नागिन सी जब तू बलखाती, ना दिल पर रहता जोर प्रिये, तुझे देख मन हुआ बावरा,रूप तेरा चित्त चोर प्रिये,
तू बंसी की मीठी धुन, मैं बजते बिगुल का शोर प्रिये,
तू श्वेत हंसिनी सी दिखती है, मै रंग बिरंगा मोर प्रिये,
तुझे देख मन हुआ बावरा,रूप तेरा चित्त चोर प्रिये,
रेशम सी तू नरम नरम, रस भरी जलेबी गरम गरम,
फूलों से कोमल पाँव प्रिये, दुपहरी की तू छाँव प्रिये,
तू संगीत का सरगम है, मै टूटी सी ताल प्रिये,
तू स्वर्ण की माला है, मै पीतल की थाल प्रिये,
तुम जुल्फें लहराती हो तो काली घटाएं छाती हैं,
तुम बारिश की बूंदों सी, धरती की प्यास बुझाती हो,
तुम शीतल जल की कूप प्रिये, मैं जेठ की चढ़ती धूप प्रिये, तुझे देख मन हुआ बावरा,रूप तेरा चितचोर प्रिये,
रहम खुदा का तुझे मिलाया,जुड़ गई प्रीत की डोर प्रिये,
आरम्भ हो तुम जिस कविता का,उसकी मैं अंतिम छोर प्रिये ,तुझे देख मन हुआ बावरा,रूप तेरा चित्त चोर प्रिये.”