*प्रिये तुम्हारे बिना*
सूना सूना लगा सारा जग
तुम्हारे बिना,
ज़हर-सा लगा हर पल
तुम्हारे बिना|
मछली जैसे है तड़पती
पानी के बिना,
आसमान अधूरा जैसे
चाँद-तारे बिना|
नदिया हो बेढब जैसे
किनारे बिना,
ज्यों फूलों की बगिया सूनी
भँवरों के बिना|
फ़िज़ाएँ जैसे हों अधूरी
मौसम के बिना,
कोरोना तालाबंदी में,
बेबस रहा तुम्हारे बिना|
पिंजर बंद पंछी की भाँति
‘मयंक’ रहा बेचैन,
फीके कटे दिन मेरे
प्रिये ! तुम्हारे बिना|
✍के. आर. परमाल “मयंक”