प्रार्थना
प्रर्थना
शब्दों से ऊपर ही रहती, हृदय भाव की ये भाषा
प्रार्थना मात्र भाव हृदय के, नहीं कोई ये परिभाषा ।।
प्रभु ये उपवन देन तुम्हारी, मात पिता संग हो सदाचारी
सदा चाहूँ शरण तुम्हारी, श्री चरणों में विनय हमारी ।।
कर्म वही हों जो तुम चाहो, अपनी इच्छा से हमें चलाओ
कर पाऊं वही काज सत्य हों, हर स्थिति में आप प्रथम हों ।।
सोच हमारी हम तक सीमित, करो कृपा जो हमें उचित हो
दुःख सुख सब फल कर्मों का, साथ तुम्हारा सदा सतत हो ।।
स्वार्थ सदा तुम्हीं से पूरित,तुम ही सदा मेरे सम्मुख हो
जो भी हो इच्छा हो तुम्हारी, हमें सदस प्रभु छत्र छाँव दो।।
मिले स्नेह प्रेम सदा ही, और पाथ प्रशस्त सदा हो
अहम भाव न मन में जागे, अनुराग सदा श्री चरण हों ।।
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