प्रार्थना
प्रार्थना
नहीं है शब्दों का व्यूह मात्र।
पूजन, अर्चन, वन्दन भी
नहीं है प्रार्थना के उपादान।
फिर प्रार्थना क्या है?
प्रार्थना एक दिव्यानुभूति है,
सृष्टि के रचयिता के प्रति
निश्शेष समर्पण की।
प्रार्थना में समाहित है –
स्वत्व को भूलकर,
निस्वार्थ भाव से,
दूसरों की खुशी के लिए
किया गया त्याग।
फिर वह त्याग
छोटा ही क्यूँ न हो
सच्ची प्रार्थना है।
— प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)