#प्रार्थना..
#प्रार्थना..?
मालिक चंचल मन के दर पर, नित स्थावर दीप जला दो।
उर वीणा पर विश्वास भरा, इक मनहर गीत सजा दो।।
मन दर्पण की धूल हटा दो, तम पहरे दूर भगाओ।
उज्ज्वल भावी जीवन देकर, सपनों के चमन खिलाओ।
ज्ञान आन की लग्न लगाकर, संस्कारी रीत जगा दो।
उर वीणा पर विश्वास भरा, इक मनहर गीत सजा दो।।
सभ्य बनें हम निर्भय रहकर, मानवता पथ अपनाएँ।
मान करें हम सबका जग में, जाति धर्म भेद भुलाएँ।
एक-सूत्र में मंगल गाएँ, हरजन का हृदय मिला दो।
उर वीणा पर विश्वास भरा, इक मनहर गीत सजा दो।।
मात-पिता गुरुओं का आदर, करना कभी न हम भूलें।
आशीष मिले पलपल इनका, गगन सफलता का छूलें।
नेक चलन हो टेक मग्न हो, विद्या का ताप लगा दो।
उर वीणा पर विश्वास भरा, इक मनहर गीत सजा दो।।
मालिक चंचल मन के दर पर, नित स्थावर दीप जला दो।
उर वीणा पर विश्वास भरा, इक मनहर गीत सजा दो।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’