प्रारब्ध के भुट्टे
सड़क किनारे बैठी मुनिया अम्मा संग भुट्टे सेके,
आते जाते लोगों में वो जीवन के सपने देखे
सबसे ज़्यादा उसे तो केवल एक से दृश्य ही भाते हैं,
रंग बिरंगे बस्ते लेके बच्चे स्कूल को जाते हैं
वो भी चाहे पढ़ना लिखना लेकिन है मजबूर बड़ी,
विद्या देवी के रस्ते में लछमी देवी प्रबल खड़ी
अम्मा आँखों के कोनों से सब चुपचाप देखती है,
मज़बूरी की अग्नि पे प्रारब्ध के भुट्टे सेकती है
कभी विधाता शायद कोई उसका पुण्य भी छांट सके,
‘शैल’ समान कठिन जीवन की कठिनाई को काट सके