प्राणदायी श्वास हो तुम।
आधार छंद- “माधवमालती” (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा (28 मात्रा)
समान्त- “आस”, पदान्त- “हो तुम” ।
2122 2122 2122 2122
प्रेम की संजीवनी हो प्राणदायी श्वास हो तुम।
कोकिला का गीत मीठा,काव्य में अनुप्रास हो तुम।।
प्रीत का अंकुर हृदय में प्रस्फुटित अचला करे जो,
टिमटिमाती तारिकाओं से सजा आकाश हो तुम।
सत्यभामा की तपस्या राधिका रुक्मिणि मुरारी,
रे! शरद की चाँदनी में स्निग्ध सा मधुमास हो तुम।
प्रीत पुष्पों से सुसज्जित छंद माधव मालती से,
सिक्त मलयानिल बसंती, मोहिनी से पाश हो तुम।
बैठकर यमुना किनारे,बाँसुरी की धुन कहे जो
नैन कान्हा बोलते जो वो मधुर सा भास हो तुम।।
नीलम शर्मा ✍️