प्राचीन दोस्त- निंब
प्राचीन दोस्त- निंब
// दिनेश एल० “जैहिंद”
आज रविवार का दिन है। सभी जानते हैं इस दिन छुट्टी रहती है। गाँव के स्कूलों की छुट्टी थी। राजू का भी स्कूल बंद था। सो वह आज जरा देर से जगा। और हर रविवार की तरह आज भी पास के जंगल की ओर चल पड़ा। उधर छोटे-मोटे जंगल और गाँव के लोगों के खेत-खलियान भी थे।
उधर जाने पर राजू के बहुत सारे दोस्त मिल गये। सभी मिलकर वहीं एक खुले बड़े मैदान में खेलने लगे।
खेलते-खेलते पास के एक पेड़ से आवाज आई।
पेड़ वहाँ दो थे। एक वरगद का तो दूसरा नीम का। बच्चे समझ नहीं पाये कि किधर से और कहाँ से आवाज आई है? सुबह सुबह कड़क व भड़कदार आवाज सुनकर सभी बच्चे डर-से गये। सभी एक दूसरे के मुँह ताकने लगे।
तभी पुन: आवाज आई-
“बच्चो! डरो नहीं, मैं बोल रहा हूँ। मैं अर्थात मैं तुम्हारे सामने खड़ा विशाल व छायादार नीम।
बच्चों ने एक साथ चिल्लाया- “नीम!”
“हाँ-हाँ, नीम। मेरे पास आओ।”
बच्चे कौतूहलवश उस पेड़ के कुछ पास गये।
परन्तु बच्चों की करीबी से नीम संतुष्ट नहीं हुआ और पुन: बोला- “…..और
पास आओ। और….!”
सभी बच्चे एक दूसरे का मुँह ताकते हुए पेड़ के बहुत पास गये। बच्चे सोच रहे थे- ‘आज ये क्या हो रहा है? कभी तो ऐसा नहीं हुआ! जबकि हम सभी और दिन भी सुबह-सुबह यहाँ आ जाते हैं और कभी-कभी तो शाम को भी इधर आ जाते हैं।’
बच्चे अब जहाँ से आवाज निकल रही थी, वहीं घूरने लगे। तत्क्षण बच्चों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब पेड़ के मोटे तने से एक बूढ़ा व्यक्ति प्रकट हुआ। बच्चे डरे मगर सम्भल गये।
बच्चों! मैंने ही तुम्हें आवाज लगाई है- “मैं हूँ नीम, विशाल नीम! मैं हूँ तुम्हारा प्यारा-प्यारा दोस्त-नीम दादा! मुझे अपना दोस्त नहीं बनाओगे!
“नीम दादा!” बच्चों ने एक स्वर में पूछा- “….दोस्त?”
नीम ने पुन: कहा- “हाँ, नीम दादा! तुम्हारा दोस्त, तुम सबों का दोस्त! तुम्हारे पूर्वजों का दोस्त, समझे।”
सभी ने एक स्वर में पूछा- “वो कैसे नीम दादा?”
नीम ने कहना शुरू किया- “मैं सिर्फ एक पेड़ ही नहीं हूँ। मैं एक बहुत ही उपयोगी पेड़ हूँ। मेरे शरीर के सभी भाग बड़े ही काम के होते हैं। मैं जीवनदायिनी वृक्ष हूँ।
राजू चौंका- ” जीवनदायिनी!”
नीम ने अपनी बात पर जोर दिया-
“हाँ…।” और कहने लगा-
“पहले तुम सभी बैठ जाओ और ध्यान से सुनो फिर मैं बीच-बीच में जो पूछूँ, उनका सही-सही उत्तर भी देते जाओ।”
सभी बच्चों ने अपने-अपने सिर हिलाते हुए “हाँ” कहा।
नीम ने पुन: कहना शुरु किया- “मैं सम्पूर्ण औषधीय गुणों से भरपूर होता हूँ। यहाँ तक कि मेरे फल, पत्ते, छाल, टहनी, शाखाएँ आदि बड़े काम की होती हैं। अब मुझे तुम सब बताओ कि तुम सब अपने दाँत कैसे साफ करते हो?”
राजू ने सबसे पहले जवाब दिया-
“मैं लाल दंत मंजन से धोता हूँ।”
राजू के एक मित्र ने कहा- “मैं तो ब्रश में कोलगेट पेस्ट लगाकर धोता हूँ।”
“अच्छा!” नीम दादा ने हामी भरी और दूसरे से पूछा- …..और तुम?
उसने जवाब दिया- “मैं तो ब्रश और क्लोज अप से धोता हूँ।”
“ठीक!” नीम दादा ने पुन: हामी भरी और तीसरे से पूछा- “….और तुम, ये मोटे लड़के, बोलो… तुम्हीं से पूछ रहा हूँ।”
मोटे लड़के ने खड़े होकर जवाब दिया- “दातून से धोता हूँ। कोई भी टहनी ली और फटाफट मुँह धो लिया, यही मेरा रोज का काम है।”
“चलो ठीक है। सभी कुछ-न-कुछ से दाँत साफ करते ही हैं। अगर दाँत साफ नहीं करोगे तुम्हारे घर की दादी तुम्हें डाटेगी।” नीम दादा ने स्वीकार्य भाव से कहा और हँस दिया- “लेकिन मै तुम्हें बताता हूँ कि कभी भी दाँत धोओ तो नीम की दातून से। अगर मेरी टहनी से मुँह धोओगे तो तुम्हें अनेक फायदे मिलेंगे।”
बच्चों में से कोई एक जिज्ञासावश तपाक से पूछा- “वो क्यों नीम दादा?”
“बताता हूँ, बताता हूँ। धैर्य धरो।” नीम दादा ने आगे कहना शुरु किया-
“तुम सबों को अनेक लाभ होंगे। जैसे- तुम्हारे दाँत अच्छे से साफ होंगे। दाँत में कीड़े नहीं लगेंगे, दाँत सड़ेंगे नहीं। मेरे कसैलेपन के कारण तुम्हारे पेट में पनपे सभी कीड़े मर जायेंगे और पेट साफ रहेगा। मुँह का स्वाद अच्छा बना रहेगा। जी मिचलाना नहीं होगा।”
किसी ने दबे स्वर में कहा- “बाबा रे बाबा, इतने फायदे!”
नीम दादा ने फिर कहना शुरू किया- “ये तो कुछ नहीं है। इससे भी ज्यादा गुणकारी तो मेरे पत्ते हैं। सुनो, मेरे पत्तों को सुखाकर चूर्ण बना लो और उस चूर्ण को खुजली, फुंसी और घाव पर नारियल के तेल के साथ लगाकर देखो। चमत्कारी फायदा होगा। तुम्हारी खुजली, फुंसी व घाव तो दो दिनों में ही रफूचक्कर नहीं हो गये तो फिर मुझे कहना। आज भी किसान मेरी पत्तियों को सुखाकर अनाज के साथ मिलाके बोरियों में रखते हैं ताकि अनाज में कीड़े या घुन न लगे, अनाज सुरक्षित रहे।”
राजू जो ध्यान लगाकर नीम दादा कि बाते सुन रहा था ने कहा- “हम सब कितने अज्ञानी और नादान हैं! बिना पैसे की दवा हमारे घर में ही मौजूद है और हम है कि डॉक्टरों के यहाँ दर- दर भटकते रहते हैं।”
“हाँ, राजू ने बिल्कुल सही कहा। बिना पैसे की दवा। इस प्रकृति ने तुम्हें कितना अनमोल व लाभकारी खजाना दिया हुआ है, इससे तुम अभी भी अनजान हो।” नीम दादा सुनाते रहे- “ये टहनी और पत्ते ही बड़े काम की चीज हैं ऐसा नहीं है। मेरे शरीर के हरेक भाग तुम्हारे काम के हैं। इन्हें तुम अपना दोस्त बनाओगे तो फायदे-ही-फायदे हैं।
अब चलो, तुम सब ये बताओ कि मेरे फल को क्या कहते हैं?”
ये क्या… नीम दादा का प्रश्न सुनकर तो सारे बच्चे चुप। किसी से भी जवाब दिये नहीं बना।
फिर नीम दादा ने बताना शुरु किया-
मेरे फल को….. ‘निंबोली’ कहते हैं। समझे, ये देखो मेरे हाथ में मेरे कुछ फल हैं पीले-छोटे। ये कुछ खट्टे-मीटे होते हैं। इन्हें तुम चाव से खा सकते हो, कोई नुकसान नहीं है। स्वादिष्ट लगेंगे।”
मोटे लड़के ने खड़े होकर एक प्रश्न कर ही दिया- “परंतु हम इन्हें खाये क्यों?”
नीम दादा ने जवाब दिया- “इसलिए क्योंकि ये तुम्हें आनंदित करेंगी, तुम्हारी बुभुक्षा शांत करेगी और तुम्हारे पेट के सभी कीड़े मार डालेगी। समझ गये।”
सभी बच्चों ने “ठीक है नीम दादा” कहकर चुप हो गये।
नीम दादा कहते रहे-
“मेरी पत्तियों के रस व मेरे बीज से निकले तेल से कई आधुनिक साबुन व तैलीय क्रीम व औषधियाँ बनती हैं।
यहाँ तक कि त्वचा, पेट, आँख के विषाणु जनित समस्याओं को मैं जड़ सहित नष्ट कर देता हूँ। मैं किसी भी प्रकार के संक्रमण को चमत्कारी ढंग से नष्ट कर देता हूँ। आज भी किसी को छोटी माता या बड़ी माता के विषाणु हमला कर देते हैं तो मेरी पत्तियाँ उन्हें भगाने में मदद करती हैं।”
सभी बड़े ध्यान से सुन रहे थे। राजू सुनते सुनते खड़ा हो गया और कहा-
“नीम दादा, आप तो बड़े गुणकारी व लाभकारी है। कुछ और बताइए न अपने बारे में…..!”
” चलो, ठीक है। मैं और बता देता हूँ अपने बीरे में। मेरे विशाल व छायादार शरीर तले मानव सहित अन्य प्राणी गरमी से राहत पाने के लिए सुस्ताते और विश्राम करते हैं।”
“मेरी पत्तियाँ कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखकर शुद्ध वायु व ऑक्सीजन उत्सर्जित करती है।”
“इनके अलावे मेरी पत्तियों को सुखा कर जलाने से जो धुआँ बनता है वह मच्छरों का बहुत बड़ा शत्रु होता है। जहाँ-जहाँ धुआँ जायेगा वहाँ से मच्छर नदारद हो जायेगे और वाता- वरण विषाणु मुक्त हो जायेगा। आज के लिए इतना काफी है। शेष फिर कभी।”
आगे नीम दादा बच्चों को यह सलाह देकर अन्तर्ध्यान हो गये कि नीम को वे सभी अपना सच्चा मित्र बनायें, उन्हें काटें नहीं, उनका वंश वृद्धि करें और जीवन में नीम के हरेक भागों का किसी-न-किसी रूप में व्यवहार करें, उनका उपयोग करें।
नीम दादा के मुख से उनकी जीवन दायनी विशेषताएँ बच्चे सुकर तृप्त हो गये। सभी चिंतन व मनन करते हुए अपने-अपने घर को लौट गये। राजू और उनके दोस्तों को बहुत देर हो चुकी थी।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
30/05/2023