प्रश्न
एक गूंगा प्रश्न कुछ कर गया
रिक्तता के एकांत को भर गया ।
स्मृति कुहासे में लिपटी रही
वो थाम हाथ मेरे घर गया ।
बाहर से अधिक भीतर घटा है
आईने का लांछन कि मर गया ।
शांत समंदर की उथल-पुथल से
कहानी का शीर्षक बदल गया ।
संधि को बैठा है तैयार मन
लिख जटिल अंत मगर गया ।