प्रश्न चिन्ह
प्रश्न चिन्ह
उठते हे लाखों प्रश्न चिन्ह एक साथ –
मन के इक अंजान कोने में ,
खुद से ही उलझते सरकते हैं ,
उत्तर की तलाश में दूसरी तरफ –
जो खुद से ही परेशान है ठीक
पहले कोने की तरह।
दोनों कोने से निराश ये प्रश्न
कचोटते है मेरे अंतरात्मा को ,
चोट कर कर के मांगते हें जवाब
हर सवाल का ।
जिसे देने में मैं असमर्थ हूँ,
या शायद असमर्थ कर दी गई हूँ-
परिस्थितियों के जाल में बंधी
समय चक्र के तीव्र आघातों के द्वारा
जिन्हें सह कर
जीवन जीने की क्षमता तो बढ़ जाती है मगर,
प्रश्नों के उत्तर देने का सामर्थ्य
हो जाता है कम ।
फिर भी किस से न शिकवा है , न शिकायत ।
हर बात को यूं ही टाल देने की
आदत के कारण मन शांत है ।
पर बदते ही जा रहे हैं इसी कारण ,
प्रति दिन ये प्रश्न चिन्ह ।
अब तो इतना विस्तार पा चुके हें
कि उत्तर ढूंढने का साहस ही
नहीं जुटा पाती ।
शायद इसी कारण अपना लिया है इन्हें
ज़िंदगी का अभिन्न अंग समझ ।