प्रश्नपत्र
जिंदगी तेरी ये मनमानी
कुछ समझ न आये
हर मोड़ पर क्यों तू
एक प्रश्नपत्र थमा जाए….
कभी कभी तो तुम
लागती हो शिक्षिका मुझे
मेरे स्कूल कॉलेज की
घूमती आगे कभी पीछे
आंखों पर चश्मा लगाए….
परीक्षाओं के दिनों की
वही दहशत उभर आती
मेरे मानस पटल पर
और पलभर को तो
विचलित भी कर जाये….
लेकिन वात्सल्य भरा हाथ
जब रख देता अनुभव,
तेरे हर सवाल को
हल करने का एक
नया जोश भर जाए…
कुछ सवाल फिर भी
रह जाते हैं अनसुलझे
छोड़ उनको वक़्त पर
इंंतज़ार करती हूँ तेरा
न जाने कब तू
नया प्रश्नपत्र ले आये……
सीमा कटोच