प्रशांत तुम ऐसे तो न थे!!
प्रशांत तुम ऐसे तो न थे,
फिर क्यों ऐसा कर रहे,
तुम प्रशांत हो,
हमने तुम्हें चेताया,
तुम फिर भी शान्त हो,
तुमसे क्षमा मांगने को कहा,
तुमने इसे नकार दिया,
हमने कितनी बार कहा,
एक बार मांग लो क्षमा,
हम माफ कर देंगे,
तुम भी खुश रहो ,
हम भी खुश हो लेंगे,
लेकिन तुम अड रहे हो,
ऐसा भी हमारे संग कर रहे हो,
तुमने हमारा कहा नहीं माना,
तुमने हमें नहीं पहचाना,
हम सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं,
हमारे निर्णय सबके लिए आशीष हैं,
तुमने हम पर उंगली उठाई है,
और एक बार नहीं,कितनी ही बार उठाई है,
तुमने हमें बार बार आहत किया है,
हम पर अनैतिक होने का दोष मढ़ा है,
हमारे निर्णयों पर प्रश्न खड़े किए हैं,
हमारी गतिविधियों पर कटाक्ष किए हैं,
यह हम कब तक सह सकते थे,
इस कारण हम तुम पर रुष्ठ हुए थे,
और हमने तुम्हारे बहाने औरों को भी संदेश देना था,
उन्हें अपनी सर्वोच्चता का प्रमाण देना था,
बस इतना ही तो हमारा उद्देश्य था,
कोई भविष्य में ऐसा न करने पाए यही संदेश था,
यह तो हमने कभी सोचा ही नहीं था,
तुम सजा पाने को आतुर हो जाओगे,
इसका कतैई कोई अंदेशा भी नहीं था,
अब हम जिस मुकाम पर आ पहुंचे हैं,
वहां से लौटने का कोई मार्ग भी नहीं बचा है,
इस लिए तुमसे हमारा यह आग्रह है,
बस यूं ही कह दो, यह सब गलती से हो गया है,
किसी को आहत करना मेरा उद्देश्य नहीं है,
हम इसी से राह निकाल लेंगे,
तुम्हें भी बरी कर देंगे,
और अपनी भी सर्वोच्चता को सिद्ध कर लेंगे,
प्रशांत जी तुम मान जाओ ना,
हमें कुछ करने को मजबूर करो ना,
तुम ऐसे तो न थे प्रशांत,
हमें क्यों कर रहे हो क्लांत,
हम बहुत हो रहे हैं अशांत,
बहुत हो गया है, अब तो हो जाओ शांत,
तुम सुन रहे हो ना प्रशांत!!