प्रवाह…
जीवन में केवल परिवर्तन होना निश्चित एवं स्थायी है। जीवन की धाराप्रवाह में बहना सीखिए… ज़टिल होकर कुछ पकड़े रहने की, बाँधने की कोशिश में, खुद को बिखेर दोगे, खो दोगे…. सबसे प्यारे का मोह, प्रवाह की राह में केवल एक रुकावट का कार्य करेगा…जिसका पश्चाताप जीवनभर के लिए भी कम है…. बंधन सभी के लिए अस्वीकार्य है…. किसी को यश -अपयश का मोह बाँधे रखता है तो किसी को एकाकी होने का भय…. किंतु वास्तविकता से सभी भली-भांति परिचित है। जीवन निष्पक्ष रुप से यथार्थ का भान करवाता है… परंतु सच अस्वीकार्य है।
एक बार निडर होकर यथार्थ को स्वीकार करो… जीवन स्वयं आपको भय से मुक्त कर देगा।
-✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’