प्रभु परशुराम।
कभी देखा है शांत गहरे समंदर को।
अपने अंदर जो लिए बैठा है तूफान को।।
समझो ना उसे ब्रह्मण बस ग्रंथो का।
वह जीता है क्रोध में प्रभु परशुराम को।।
मत करो उसकी अना पर चोट तुम।
वर्ना रोक ना पाओगे उसके सैलाब को।।
कभी देखा है शांत गहरे समंदर को।
अपने अंदर जो लिए बैठा है तूफान को।।
समझो ना उसे ब्रह्मण बस ग्रंथो का।
वह जीता है क्रोध में प्रभु परशुराम को।।
मत करो उसकी अना पर चोट तुम।
वर्ना रोक ना पाओगे उसके सैलाब को।।