प्रभु कर लो विनती क़बूल
प्रभु कर लो विनती कबूल
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प्रभु तेरे चरणों की हम धूल
हुजूर कर लो विनती कबूल
हम धरती पर हैं भूले बिसरे
नजरअंदाज करो सारी भूल
पग पग पर पथभ्रष्ट हो जाएं
जीवनपथ पर हम हों शार्दुल
पल में रिस्ते बिगड़ते संवरते
तेरी कृपादृष्टि की मिले झूल
तुम बिना हमारा नहीं सानी
ईश्वर वंदना में रहें मशगूल
चारों तरफ छाया रहे अंधेरा
रोशन हों राहें कर तम गुल
मनसीरत काँटो से घिरा है
खिला दो घर आंगन में फूल
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)