प्रभात
स्वर्ण किरणों से नहाकर।
सुनहरी अलकें सजाकर।
भोर आयी लालिमा ले-
दान देता कर दिवाकर।
व्योम मण्डल का महावर।
माँग स्वर्णिम वो सजाकर।
चमकती मोती रजत की-
अरुण छवि को अंक में भर।
लालिमा तट बिन्दु लाकर।
दिव्य सरिता में समाकर।
स्वर्णजल का भान करती-
प्रवाहित मारुत सुधाकर।
आरती धरती सजाकर।
नेह आँचल में छुपाकर।
प्रार्थना आराध्य की अब-
कर रही नव गीत गाकर।
चिन्त्यमय नव प्राण पाकर।
पुष्प जागे खिल -खिलाकर।
जागरण की भव्य मुक्ता-
विहँसती धरणी लुटाकर।
व्योम में पुलकित प्रभाकर।
देवि ऊषा को मनाकर।
कर रहे श्रृंगार जग का-
विमल मुक्ता को हँसाकर।
डा.मीना कौशल
‘प्रियदर्शिनी’