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9 Sep 2018 · 1 min read

“प्रभात छौंक”

“प्रभात छौंक”
सुबह उठी श्रीमती,
तीब्र थी बहुत गति।
कुछ बुद – बुदा रही,
प्रभात गान गा रही।।

मिर्चियों का छौंक दे,
सोतो को जगा रही।
कुक्कुट सी बांग दे,
तेर – टेर लगा रही।।

सबके प्राण – घ्राण मे,
जगी आस प्रीत त्राण मे।
मति का लक्ष्य ये पति,
श्रीमती बड़ी इठला रहीं।।

कह रहीं मुदित मन,
घर का प्रत्येक जन।
सुखी रहे व स्वस्थ हो,
इसलिए नाश्ता बना रही।।

समय की बड़ी कमी,
छौंक – छींक की नमी।
बात – बात पर बिगड़,
बता – बता सता रही।।

नोक-झोंक से दूर दूर,
छौंक छौंक जगा रही।
कास कण्ठ देख मेरे,
अनूठा सुख पा रही।।

डॉ.कमलेश कुमार पटेल “अटल”

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 479 Views
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