प्रदूषण
हे मानव मैं पुकार रहा हूँ,धुँआ मत उड़ा।
न कर वायु को प्रदूषण, पेड़ तुम लगा।।
धरा की सुंदर छाया,पेड़ से ही हमे मिली।
मधुर मधुर मंद हवाएं, अमृत बन चली।।
पेड़ों का एक बाग लगा ,देख मैं समझाऊँ।
धरा को उपवन बना, निर्मल जीवन पाऊँ।।
जल में मूर्ति न डूबा, कूड़ा करकट न बहा।
मानव मानव को जगा, जल प्रदूषण बचा।।
टेक्नोलॉजी को चला,ईयर फोन कम लगा।
खुशीयाँ जरूर मना,डीजे थोड़ा कम बजा।।
रासायनिक खाद न दे,जैविक खाद लगा।
हायब्रिड को न उगा,मृदा प्रदूषण से बचा।।
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रचनाकार- डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना , बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822