प्रदूषण से हानि है।
मानव ने खूब की मनमानी
प्रकृति की कर दी हानि
गंदी कर दी हवा पानी
खनन किया की मनमानी
धरती अब नही रही धानी
वृक्ष काट पहुंचायी हानि
देख सूरज को गुस्सा आया
आंख लालकर क्रोध दिखाया
मानव फिर भी समझ न पाया
करदी बडी बडी नादानी
आग बरषती है अम्बर से
सूख गया है सब पानी
बाढ प्रदूषण सूखा रोग
पहुंच रही है बडी हानी
लुप्त हो रहे पशु पक्षी सब
प्रकृति से हुई छेडखानी
रही कृतिमता जीवन भर मे
करता है नित मनमानी
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
नरई चौराहा संग्रामगढ प्रतापगढ