प्रदूषण और प्रदूषण
धरणी के आँचल पर, क्यों दाग लगाते हो।
नदियों को कर प्रदूषित , क्यों गरल बनाते हो । ।
मेघ घुमड़ कर आते, निष्ठुरता दिखलाते ;
सरिता रूठी रहती, सब खेत उजड़ जाते ।
कभी क्रोध यदि आता तो , बाढ़ लिए यह बढ़ती-
तुम काट घने जंगल, क्यों मृत्यु बुलाते हो ।।
नदियों को कर प्रदूषित , क्यों गरल बनाते हो । ।
तुम बैठ किनारे तरणी के , अंशुक धोकर लाते;
तन-मन के मैल सहित, डंगर भी नहलाते ।
मूरख अज्ञानी हो तुम , इतना भी ज्ञात नहीं
पानी को कर गंदा, तुम असर गँवाते हो।।
नदियों को कर प्रदूषित , क्यों गरल बनाते हो ।
माँ पोषण करती है, हर धान्य उगाती है;
इसकी मीठी धारा, मन प्राण बचाती है।
खुशियों के कूपों में, दुःख की काली छाया-
तुम अपने ही सुख में, क्यों आग लगाते हो ।।
नदियों को कर प्रदूषित , क्यों गरल बनाते हो ।