प्रथम मेह
बंजर वसुधा हुई प्रसूता,
घन ने गर्भाधान किया।
सुप्त धरा में नव अंकुर ने,
प्रथम मेह पय-पान किया।
अर्धखुले नयनों से अंकुर,
झाँकें मिट्टी के दामन से।
महकी सौंधी गंध मृदा में,
बहती कुदरत के आँगन से।
शुक पिक मोर पपीहों ने मिल,
बरखा का यशगान किया।
सुप्त धरा में नव अंकुर ने,
प्रथम मेह पय पान किया।
छत्र तान कर खड़ी वनस्पति,
मुस्काती अभिषिक्त हुई।
नदी ताल झरनों झीलों के,
जलराशि अतिरिक्त हुई।
हरियाली की नयी चुनरिया,
ओढ़ धरा से मान किया।
सुप्त धरा में नव अंकुर ने,
प्रथम मेह पय पान किया।
मेघों के प्रेमामृत रस से,
तृषित कंठ सब तृप्त हुऐ।
वेद -पाठ- सा करते दादुर,
रजकण सारे लुप्त हुऐ।
जान कृषक ने पावस उत्सव,
कर में हल संधान किया।
सुप्त धरा में नव अंकुर ने,
प्रथम मेह पय पान किया।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’