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6 Mar 2024 · 1 min read

प्रतीक्षा

धरती सी मैं करूँ प्रतीक्षा,
मेघा बन तुम आ बरसो।
नदिया सी मैं बहती जाऊँ,
तुम सागर बन आन मिलो।

रोम – रोम है मेरा प्यासा,
जीवन बना एक अभिलाषा
मुझको मेरा मान तो दो,
इतना सा सम्मान तो दो।
दीपक सी मैं जलती जाऊँ,
तुम रैना बन साथ रहो।

नहीं माँगती मैं कुछ ज्यादा,
बस इतना तुम कर दो वादा।
जीवन के सूने आँगन में,
घिरे उदासी जब इस मन में।
वीणा सी मैं बजती जाऊँ,
तुम मेरा सुर – राग बनो।

रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार) ।
वर्ष :- २०१३.

Language: Hindi
95 Views
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