प्रतीक्षा
ये उदास सी शाम
कुछ लोहित सा आसमान
सूरज भी ऊबा सा
समुद्र के तट पर लेटा
आख़िरी किरण के डूबने का
इंतज़ार करता था
इंतज़ार मुझे भी था
अंधेरा घिर आने का
रौशनी के खो जाने पर
तुम्हारे आने का
तेरी मधुर याद में मन खोया था
स्मृति के कई बार पढ़े
पन्नों को पलटता था
चित्र कुछ धुँधले थे
जब हम-तुम मिले थे,
साथ-संग हँसे थे
रोये थे, चुप हुए थे…
जिन्दगी रंगीन थी
बेहद हसीन थी,
अचानक ये क्या हुआ?
वो साथ छूट गया
ग़लती कुछ तुम्हारी थी
कुछ नादानी हमारी थी
आज भी याद है
कैसे दिल टूटा था
आँसुओं के सैलाब में
मेरा वज़ूद डूबा था…
आज भी वहीं इंतजार करती हूँ
जहाँ बरसों पहले
हमारा साथ छूटा था,
साथ का वो मंज़र बहुत याद आता है
कभी ये हँसाता कभी ये रुलाता है