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6 Jun 2023 · 1 min read

प्रतीक्षा-पत्र

साॅंझ का धुंधलका
मन में उतर गया।
वक्त के साथ -साथ
सब कुछ बदल गया।
पंगु होती जा रही
बूढ़ी माँ की आस।
कुंठाऍं घेर रही
मन का आकाश।
कजरारी ऑंखों में
पानी भर गया।
प्रतीक्षारत सिन्दूर
गम में ढल गया।
कब निकलेगी यह
कंटीली फांस?
क्या उसे होता नहीं
दर्द का अहसास?
पैसा नहीं सब कुछ
सोच दिल भर गया।
तड़पता है वह भी
जब से निकल गया।
खींचता है अपनों का
स्नेह और विश्वास‌।
अपनी माटी की
सौंधी- सौंधी सांस।
दिल का दर्द
कागज पे उतर गया।
लौटूंगा जल्दी ही
हरफों में ढल गया।
प्रतीक्षा में चमकेगी
ऑंखें उदास।
साॅंझ का धुंधलका
बनेगा प्रकाश।
—प्रतिभा आर्य,
अलवर (राजस्थान)

Language: Hindi
14 Likes · 8 Comments · 472 Views
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