प्रतियोगिता के लिए
गीत
सांझ ढली और ,मन में टिमटिमाये तारे।
चौखट से चन्द्र किरणें भी तुम्हें पुकारे।
सांझ ढली…..
बेला की महक श्वासें गुदगुदाऐ ऐसे
तितली को देख दुहिता खिलखिलाए जैसे।
सोलह श्रृंगार करके खिली दमकी रजनी।
प्रीतम से मिलने को हुई विकल सजनी।
बांट सजी रात बहकी ;नेह में तुम्हारे।
चौखट से चन्द्र किरणें भी तुम्हें पुकारे। साँझ ढली…
चहक उठा मन अंगना कोयल की कूक से।
शीतल धरती हुई ज्यों तपती सी धूप से..2
हौले हौले घन फिर धरा चूमने लगे।
देह सदन तृप्त हुआ,मयूर झूमने लगे
कैसे नव किसलय सी; खिल उठीं दीवारें ।
चौखट से चन्द्र किरणें भी तुम्हें पुकारे। साँझ ढली…
तरिनी इतरा रही भाल चन्द्रमा पहन
विचलित तट कंपित है देख नीर का वहन
सावन की बूंदों को केश में सजा रही।
अंबर की प्रेमिका, प्रेम सुखद पा रही।
लोचन अविराम, ऐसे दृश्य को निहारे।
चौखट से चन्द्र किरणें भी तुम्हें पुकारे.
साँझ ढली….और मन मे टिमटिमाए तारें चौखट से चंद्रकिरणे भी तुम्हें पुकारे
मनीषा जोशी मनी।
ग्रेटर नोएडा 201310