प्रतिभा अपनी खुद को ही _गजल /गीतिका
प्रतिभा अपनी खुद को ही निखारना पड़ती है।
कहां तेरी तकदीर संवारने बैठा है कोई जमाने में।।
लफ्ज़ ऐसे गढ़ना तू अपने गीत गजलों में मेरे मीत ।
दुनिया को आनंद आ जाए सुनकर तेरे तराने में।।
शांति स्थापित हो सकती है तेरे मेरे सबके प्रयास से।
कुछ लोग तैयार बैठे हैं अशांति की लो सुलगाने में।।
ऐसे वैसे कैसे भी भूख पेट की मिट जाए मेरी यारो।
“महंगाई” को आनंद आ रहा है मुझे तड़फाने में।।
गुजरता रहा “सादगी” से मैं जिंदगी की हर डगर में।
कसर कहां बाकी रखी “दरिंदगी” ने मुझे सताने में।।
छोड़ जा अनुनय निशानियां कुछ अपनी जमाने में।
कुछ तो साथ रहेगा तेरे ईश्वर के दर पर बताने में।।
राजेश व्यास अनुनय