Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 May 2023 · 2 min read

“प्रताड़ित पुरुष”

मैं पुरुष हूँ
और मैं भी प्रताड़ित होता हूँ
मैं भी घुटता हूँ पिसता हूँ
टूटता हूँ,बिखरता हूँ
भीतर ही भीतर
रो नहीं पाता,कह नहीं पाता
पत्थर हो चुका,
तरस जाता हूँ पिघलने को,
क्योंकि मैं पुरुष हूँ….

मैं भी सताया जाता हूँ
जला दिया जाता हूँ
उस “दहेज” की आग में
जो कभी मांगा ही नहीं था,
स्वाह कर दिया जाता है
मेरे उस मान सम्मान
को तिनका तिनका
कमाया था जिसे मैंने
मगर आह भी नहीं भर सकता
क्योंकि पुरुष हूँ…

मैं भी देता हूँ आहुति
“विवाह” की अग्नि में
अपने रिश्तों की
हमेशा धकेल दिया जाता हूँ
रिश्तों का वज़न बांध कर
ज़िम्मेदारियों के उस कुँए में
जिसे भरा नहीं जा सकता
मेरे अंत तक भी
कभी दर्द अपना बता नहीं सकता
किसी भी तरह जता नहीं सकता
बहुत मजबूत होने का
ठप्पा लगाए जीता हूँ
क्योंकि मैं पुरुष हूँ….

हाँ मेरा भी होता है “बलात्कार”
कर दी जाती है
इज़्ज़त तार तार
रिश्तों में,रोज़गार में
महज़ एक बेबुनियाद आरोप से
कर दिया जाता है तबाह
मेरे आत्मसम्मान को
बस उठते ही
एक औरत की उंगली
उठा दिये जाते हैं
मुझ पर कई हाथ
बिना वजह जाने,
बिना बात की तह नापे
बहा दिया जाता है
सलाखों के पीछे कई धाराओं में
क्योंकि मैं पुरुष हूँ…

सुना है जब मन भरता है
तब वो आंखों से बहता है
“मर्द होकर रोता है”
“मर्द को दर्द कब होता है”
टूट जाता है मन से
आंखों का वो रिश्ता
ये जुमले
जब हर कोई कहता है☹️
तो सुनो सही गलत को
एक ही पलड़े में रखने वालों
हर स्त्री श्वेत वर्ण नहीं
और न ही
हर पुरुष स्याह “कालिख”
क्यों सिक्के के अंक छपे
पहलू से ही
उसकी कीमत हो आंकते
मुझे सही गलत कहने से पहले
मेरे हालात नहीं जांचते ???
जिस तरह हर बात का दोष
हमें हो दे देते
“मैं क्यूँ पुरुष हूँ???”
हम खुद से कह कर
अब खुद को हैं कोसते☹️

“इंदु रिंकी वर्मा”©

Language: Hindi
97 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पिरामिड -यथार्थ के रंग
पिरामिड -यथार्थ के रंग
sushil sarna
न्याय होता है
न्याय होता है
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
गाँधी जी की लाठी
गाँधी जी की लाठी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
धीरे धीरे बदल रहा
धीरे धीरे बदल रहा
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मेरी तो धड़कनें भी
मेरी तो धड़कनें भी
हिमांशु Kulshrestha
🌼एकांत🌼
🌼एकांत🌼
ruby kumari
"सुस्त होती जिंदगी"
Dr Meenu Poonia
बहुत याद आता है मुझको, मेरा बचपन...
बहुत याद आता है मुझको, मेरा बचपन...
Anand Kumar
मेरे अंदर भी इक अमृता है
मेरे अंदर भी इक अमृता है
Shweta Soni
वीर पुत्र, तुम प्रियतम
वीर पुत्र, तुम प्रियतम
संजय कुमार संजू
मेरा सुकून....
मेरा सुकून....
Srishty Bansal
मेला एक आस दिलों🫀का🏇👭
मेला एक आस दिलों🫀का🏇👭
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
*अध्याय 4*
*अध्याय 4*
Ravi Prakash
कुछ लोग होते है जो रिश्तों को महज़ इक औपचारिकता भर मानते है
कुछ लोग होते है जो रिश्तों को महज़ इक औपचारिकता भर मानते है
पूर्वार्थ
छोड़ भगौने को चमचा, चल देगा उस दिन ।
छोड़ भगौने को चमचा, चल देगा उस दिन ।
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
दुःख ले कर क्यो चलते तो ?
दुःख ले कर क्यो चलते तो ?
Buddha Prakash
जाने इतनी बेहयाई तुममें कहां से आई है ,
जाने इतनी बेहयाई तुममें कहां से आई है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
फालतू की शान औ'र रुतबे में तू पागल न हो।
फालतू की शान औ'र रुतबे में तू पागल न हो।
सत्य कुमार प्रेमी
23/41.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/41.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"नशा इन्तजार का"
Dr. Kishan tandon kranti
जीवन में सफल होने
जीवन में सफल होने
Dr.Rashmi Mishra
अपनी सीरत को
अपनी सीरत को
Dr fauzia Naseem shad
जागता हूँ क्यों ऐसे मैं रातभर
जागता हूँ क्यों ऐसे मैं रातभर
gurudeenverma198
सफ़र
सफ़र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
संस्कारों को भूल रहे हैं
संस्कारों को भूल रहे हैं
VINOD CHAUHAN
"हमारे नेता "
DrLakshman Jha Parimal
दूर किसी वादी में
दूर किसी वादी में
Shekhar Chandra Mitra
#ऐसी_कैसी_भूख?
#ऐसी_कैसी_भूख?
*Author प्रणय प्रभात*
इतनी बिखर जाती है,
इतनी बिखर जाती है,
शेखर सिंह
!!! सदा रखें मन प्रसन्न !!!
!!! सदा रखें मन प्रसन्न !!!
जगदीश लववंशी
Loading...