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11 Jun 2023 · 1 min read

प्रणय गीत

प्रणय गीत
_________
अभ्र सम अनुराग उर में ले बसा दृग में तुम्हारे,
सिंधु सम गहरे हृदय में चाहता रहना हमेशा।।

कल्पनाओं में हमारे
प्रीति के हर प्रस्फुटन में,
एक तुम रहती रही हो
सत्य है यह मान लेना।
कह रहा हूँ मैं तुम्हें यह
बिन तुम्हारे शुन्य हूँ मैं,
मौनता को शब्द देकर
ही मुझे तुम जान लेना।

प्रेम की अभिलाष लेकर ही तुम्हारे द्वार आया,
तुम शिराओं में सदा अनुरक्ति बन बहना हमेशा।
अभ्र सम अनुराग उर में ले बसा दृग में तुम्हारे,
सिंधु सम गहरे हृदय में चाहता रहना हमेशा।।

पंथ वाधा युक्त थे पर
मैं चला इसपर निरंतर,
मान कर उत्साह को तुम
नेह से सिंचित करोगी।
देख कर यह प्रेम मेरा
प्यास नेहिल जब जगेंगे,
था मुझे विश्वास निज पर
प्रीति अर्पित तुम करोगी।

मन करे मंदिर बनाकर मैं करूँ पूजा तुम्हारी,
चाहना जो भी हृदय की प्रेम से कहना हमेशा।
अभ्र सम अनुराग उर में ले बसा दृग में तुम्हारे,
सिंधु सम गहरे हृदय में चाहता रहना हमेशा।।

प्रेम का पथ है कठिन पर
पग बढ़ा आगे बढ़ो तुम,
राह में कण्टक मिलेंगे
पर कहीं रूकना नहीं है।
लांछनों का दौर आये
मार्ग को अवरूद्ध करने,
थाम कर विश्वास का
दामन कहीं झुकना नहीं है।

है प्रणय नवनीत जैसा आस के दधि से जो निःसृत,
गर सुगंधित चाहते घृत चाह को महना हमेशा।
अभ्र सम अनुराग उर में ले बसा दृग में तुम्हारे,
सिंधु सम गहरे हृदय में चाहता रहना हमेशा।।

मौलिक, स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार
फोन:- 9560335952

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 241 Views
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