प्रणय गीत
गीत प्रणय के आज गा रही
तुम ही मेरे वरदान प्रिय,
भक्तन जैसी करूँ साधना
तुझ बिन जीना बेजान प्रिय।
हृदय में करते यूँ अभिसार
ज्यों उमड़ा हो तूफान प्रिय,
परिणीता बन मैं राह तकूँ
जीवन तुझपे बलिदान प्रिय।
प्रत्याशा है अविकल गति से
आस का दीप विदमान प्रिय,
इक टीस लिये अनुराग भरा
हिय में तेरा ही नाम प्रिय।
तस्वीर लिये मैं फिरती हूँ
अनूठा है ये रुझान प्रिय,
नीर भरी अंखियन में टीस
प्रीत का कैसा विधान प्रिय।
सूने उपवन, सूनी राहें
लगती हैं अब अनजान प्रिय,
बस एक बार आ जाओ तुम
विरह का तुम हो निदान प्रिय।
रह-रह कर श्वासों में मेरी
यादों का चलता गान प्रिय,
वन में जोगन बन भटक रही
छेड़ो न प्रेम की तान प्रिय।
सुख का संसार मिला तुमको
पीड़ा का मुझे कमान प्रिय,
तुम एक कसक बन कर मेरे
उतरे हो उर में प्राण प्रिय।
रचयिता—
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’