प्रगति पथ
अंजानी राहो को छोड़ पथिक तू ,
नयी राह बनाता चल ।
औरों को न देख,
नयी दिशा दिखाता चल ।
कर हौसला बुलंद ,
चट्टानों को तोड़ के चल ।
अंधियारी गलियों से निकल ,
उजियारा फैलाता चल ।
असत्य पर कर फ़तह ,
सत्य की पताका फहराता चल ।
लोगों की कर मदद ,
साथ निभाना सिखाता चल ।
शत्रुओं को लगा गले ,
प्रेम भाव बढा़ता चल ।
नफरत की दीवारों को तोड़ ,
प्रेम का पाठ पढा़ता चल ।
न कर फल की चिंता ,
बस कर्म अपना करता चल ।
लक्ष्य से न भटक ,
सही निशाना साधे चल ।
न कर अंगारों की चिंता ,
ज्वालामुखी सा बनता चल ।
कर मन निर्मल-शीतल ,
खुशहाली फैलाता चल ।
न रुक तू , न थक तू ,
अथक बन चलाता चल ।
न घबरा मुश्किलों से ,
पथिक तू आगे बढ़ता चल ।
न बन भौतिकवादी तू ,
मौलिकता अपनाता चल ।
डोंग – धतूरे से तू बचकर ,
यथार्थ में जीता चल ।
सर्व समाज का कर उत्थान ,
सबका हित तू करता चल ।
नक्कालों से हो सावधान ,
असल को पहचानता चल ।
जिसने जी लिया इस जीवन को ,
उससे सबक तू लेता चल ।
सर्वगुण हो सम्पन्न ,
प्रगति पथ पर बढ़ता चल ।
—- डां. अखिलेश बघेल —-
दतिया ( म.प्र. )