प्रगति कर ली मेरे शहर ने…
प्रगति कर ली मेरे शहर ने
पेड़ सारे हवा हो गए हैं
शीतल बयार नहीं बहती अब
पक्षियों की चहचहाहट नहीं है
गौरैया दिखाई नही देती अब
तोते भी नजर नहीं आते हैं
एक चौक से दूसरे चौक तक
भवनों का जंजाल लगा है
डामर वाली सड़कें नहीं अब
सीमेंट कंक्रीट का जाल बिछा है
पलाश गुलमोहर दुर्लभ लगते अब
क्रोटन की बहारें आई हैं
त्योहारों पर अब मेले नहीं लगते
बधाइयां इंटरनेट से आती हैं
आपस में मिलना बंद हुआ अब
दौर वर्चुअल मीटिंग का आया है
बिन बच्चे मैदान सूने सूने अब
मोबाइल गेम ने धूम मचाई है
बुजुर्ग साथ चाहे बच्चों का
बच्चों ने आश्रम की राह दिखाई है
प्रगति कर ली मेरे शहर ने
पेड़ सारे हवा हो गए हैं…
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
01.06.2023