प्रकृति
स्वर्ण मुखी छंद
प्रकृति
पर्वत -पर्वत धवल हो गए।तरुवर-तरुवर झड़ रहे पात,
दिवस घनेरे, ठिठुरते रात।
नदी -नाले भी चुप हो गए।
सन सना कर समीर बह रही।
शीतल जल बिंदु घन बरसते,
दल -बादल आकाश गरजते।
शीत झेलती प्रकृति कह रही।
घन सवार जा रहा हेमन्त।
सिमट रही क्यों डाली- डाली,
निज देह धो हुई मतवाली।
मन लुभाने आ रहा बसंत।
जो आएगा ,वो जाएगा।
अपना कर्तव्य निभाएगा।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश