Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Feb 2023 · 3 min read

प्रकृति से हम क्या सीखें?

कहानी##
गाँव के किनारे एक तालाब था। उस तालाब पर सुबह और शाम के समय आस-पास के पेडों पर रहने वाले सभी पक्षी पानी पीने आते थे। मैं अपनी घर की बॉलकनी से उस दृश्य को देखता रहता था। सचमुच वह बडा सुन्दर दृश्य होता था जब रंग-बिरंगे और आकार में बडे-छोटे पक्षी आनन्दित होकर पानी से खेलते थे।
एक शाम की बात है मैं ऐसे ही मनोरम दृश्य की प्रतीक्षा में उस तालाब की ओर निहार रहा था।
दिनभर का शांत तालाब अब रसिक हो चुका था, रंगीला प्रतीत हो रहा था |इसी समय मैंने देखा कि एक तोता कुछ अव्यवस्थित तरीके से उडता हुआ उस तालाब पर आया। तालाब के पास जैसे ही वह पानी पीने का प्रयास करने लगा, वह झुका ही था कि गिर पडा। मैंने समझा शायद वह तोता किसी शिकारी अथवा जंगली कुत्तों या फिर शरारती बच्चों के गुलेल से क्षताहत होकर, अपनी प्राण-रक्षा में भागते-भागते यहाँ पहुँच पाया और इस पानी के स्रोत पर आकर विवश गिर पडा। यह देखकर मैं स्वभावतः दया से द्रवित हो गया। उस समय सभी पक्षियों का जमघट वहाँ होता है, फलतः उन्होंने इस घटना के बाद जोर-जोर से कूँकना= चीखना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे सभी पक्षियों में यह कोलाहल और भी (जो शायद संकट का संकेत था) बढ़ने लगा। ऐसी घटनाएँ मैंने देखी हैं जब किसी पक्षी के घौंसले पर सर्प चला जाता था तब वे भयवश या त्राण-आस में ऐसा ही कोलाहल करते हैं|
इसी दौरान मैंने देखा कि एक तोते का झुंड वहाँ आ पहुँचा । उनके पहुँचने पर मानो घायल तोते को हल्की-सी चेतना आयी। उस झुंड में से एक आकार में हृष्ट-पुष्ट तोता उस धरातल पर पडे हुए तोते के पास पहुँचा , (जो संभवतः उस समूह का नेता या जानकार था) उसने कुछ निरीक्षणात्मक दृष्टि से मानो उसे देखा—-पैर से उसके फूले-से पेट को इस प्रकार दबाने का प्रयास करने लगा जैसे कोई हार्ट के डॉक्टर अथवा कुशल वैद्य करते हैं। मैं प्रकृति के इस अद्भुत् प्रयासों को देखकर हतप्रभ एवं चुम्बक से आकर्षित लोहे के खण्ड की तरह उसी ओर और दत्तचित्त होकर देखने लगा। कुछ क्षण के बाद वह तोता उडकर गया और लौटते समय वह चाेंच में एक तिनके जैसा कुछ दबाकर लाया। इसके बाद उसने बारी-बारी से तालाब के पानी में भिगोकर उस मूर्च्छित तोते की आँखों एवं मुख पर छिडकने-सा प्रयास लगा। इस दृश्य को मेरे अलावा और पक्षी भी विना देखे रह नहीं सके। मैं इधर बॉलकनी के इस किनारे से उस किनारे तक बैचेनी से घायल तोते की अवस्था को देखने की उत्कण्ठा में अपने पास रखी चाय को भी उठा नहीं पाया। शायद मुझे भी प्रकृति चमत्कार के प्रति आशा थी। मेरे मन में जबरर्दस्त जिज्ञासा थी कि वो तोता घायल था अथवा बीमार था? तो दूसरा तोता तिनके जैसा लाया वह क्या था और उसे वह लाया कहाँ से? साथ ही जिस प्रकार वह उस घायल की चिकित्सा कर रहा था उसे वह प्रेरणा कैसे प्राप्त हुई? ऐसी ही अनेक विचारधारा की ऊहापोह की डोरी से बँधा हुआ मैं तब एकाएक ताली बजा उठा जब मैंने देखा कि घायल तोता उठकर उडने का प्रयास कर रहा है। अब अँधेरा घना-सा होने लगा था ,सभी पक्षी अपने आवास में जाने लगे थे। बगुला,कबूतर और न जाने कितने ही पक्षियों का दल उडान भरकर लौटने लगा था। कुछ प्रयासों के बाद उस अस्वस्थ्य तोता ने फिर से ऊँची उडान भरी।मेरी कई जिज्ञासा का समाधान हुआ ही नहीं किन्तु चंद्रमा के उदय होने के साथ ही उस मूर्च्छित तोते के जीवन में चेतना-प्रकाश का विकास हुआ और एक बार फिर मैं प्रकृति के इस नियमबद्ध प्राणिजगत के ज्ञानवर्धक-प्रेरक प्रसंग से उठे प्रश्नों से घिरा हुआ अव्यक्त प्रकृति के प्रति नतमस्तक हो गया।

349 Views

You may also like these posts

है नसीब अपना अपना-अपना
है नसीब अपना अपना-अपना
VINOD CHAUHAN
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - ७)
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - ७)
Kanchan Khanna
"मां" याद बहुत आती है तेरी
Jatashankar Prajapati
*तेरी याद*
*तेरी याद*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
वादी ए भोपाल हूं
वादी ए भोपाल हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
01/05/2024
01/05/2024
Satyaveer vaishnav
बेशक हम गरीब हैं लेकिन दिल बड़ा अमीर है कभी आना हमारे छोटा स
बेशक हम गरीब हैं लेकिन दिल बड़ा अमीर है कभी आना हमारे छोटा स
Ranjeet kumar patre
झूठे परदे जो हम हटाने लगे,
झूठे परदे जो हम हटाने लगे,
पंकज परिंदा
रुख बदल गया
रुख बदल गया
Sumangal Singh Sikarwar
अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा
अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा
सुरेश ठकरेले "हीरा तनुज"
"मेरे पाले में रखा कुछ नहीं"
राकेश चौरसिया
2539.पूर्णिका
2539.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
Tumhara Saath chaiye ? Zindagi Bhar
Tumhara Saath chaiye ? Zindagi Bhar
Chaurasia Kundan
दिल आइना
दिल आइना
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
The destination
The destination
Bidyadhar Mantry
शिक्षण और प्रशिक्षण (लघुकथा)
शिक्षण और प्रशिक्षण (लघुकथा)
Indu Singh
विवेकवान कैसे बनें। ~ रविकेश झा
विवेकवान कैसे बनें। ~ रविकेश झा
Ravikesh Jha
17) ऐ मेरी ज़िंदगी...
17) ऐ मेरी ज़िंदगी...
नेहा शर्मा 'नेह'
रिश्ता उम्र भर का निभाना आसान नहीं है
रिश्ता उम्र भर का निभाना आसान नहीं है
Sonam Puneet Dubey
हर काम की कोई-ना-कोई वज़ह होती है...
हर काम की कोई-ना-कोई वज़ह होती है...
Ajit Kumar "Karn"
प्रेम
प्रेम
Sanjay ' शून्य'
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
दीवाली
दीवाली
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
धनुष वर्ण पिरामिड
धनुष वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
*मारा लो रावण गया, रामचंद्र के हाथ (कुंडलिया)*
*मारा लो रावण गया, रामचंद्र के हाथ (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
शंभू नाथ संग पार्वती भजन अरविंद भारद्वाज
शंभू नाथ संग पार्वती भजन अरविंद भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज
बुद्ध पूर्णिमा विशेष:
बुद्ध पूर्णिमा विशेष:
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
*ऐसी हो दिवाली*
*ऐसी हो दिवाली*
Dushyant Kumar
शिक्षा और संस्कार जीवंत जीवन के
शिक्षा और संस्कार जीवंत जीवन के
Neelam Sharma
हाँ, मैं पुरुष हूँ
हाँ, मैं पुरुष हूँ
हिमांशु Kulshrestha
Loading...