प्रकृति से हम क्या सीखें?
कहानी##
गाँव के किनारे एक तालाब था। उस तालाब पर सुबह और शाम के समय आस-पास के पेडों पर रहने वाले सभी पक्षी पानी पीने आते थे। मैं अपनी घर की बॉलकनी से उस दृश्य को देखता रहता था। सचमुच वह बडा सुन्दर दृश्य होता था जब रंग-बिरंगे और आकार में बडे-छोटे पक्षी आनन्दित होकर पानी से खेलते थे।
एक शाम की बात है मैं ऐसे ही मनोरम दृश्य की प्रतीक्षा में उस तालाब की ओर निहार रहा था।
दिनभर का शांत तालाब अब रसिक हो चुका था, रंगीला प्रतीत हो रहा था |इसी समय मैंने देखा कि एक तोता कुछ अव्यवस्थित तरीके से उडता हुआ उस तालाब पर आया। तालाब के पास जैसे ही वह पानी पीने का प्रयास करने लगा, वह झुका ही था कि गिर पडा। मैंने समझा शायद वह तोता किसी शिकारी अथवा जंगली कुत्तों या फिर शरारती बच्चों के गुलेल से क्षताहत होकर, अपनी प्राण-रक्षा में भागते-भागते यहाँ पहुँच पाया और इस पानी के स्रोत पर आकर विवश गिर पडा। यह देखकर मैं स्वभावतः दया से द्रवित हो गया। उस समय सभी पक्षियों का जमघट वहाँ होता है, फलतः उन्होंने इस घटना के बाद जोर-जोर से कूँकना= चीखना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे सभी पक्षियों में यह कोलाहल और भी (जो शायद संकट का संकेत था) बढ़ने लगा। ऐसी घटनाएँ मैंने देखी हैं जब किसी पक्षी के घौंसले पर सर्प चला जाता था तब वे भयवश या त्राण-आस में ऐसा ही कोलाहल करते हैं|
इसी दौरान मैंने देखा कि एक तोते का झुंड वहाँ आ पहुँचा । उनके पहुँचने पर मानो घायल तोते को हल्की-सी चेतना आयी। उस झुंड में से एक आकार में हृष्ट-पुष्ट तोता उस धरातल पर पडे हुए तोते के पास पहुँचा , (जो संभवतः उस समूह का नेता या जानकार था) उसने कुछ निरीक्षणात्मक दृष्टि से मानो उसे देखा—-पैर से उसके फूले-से पेट को इस प्रकार दबाने का प्रयास करने लगा जैसे कोई हार्ट के डॉक्टर अथवा कुशल वैद्य करते हैं। मैं प्रकृति के इस अद्भुत् प्रयासों को देखकर हतप्रभ एवं चुम्बक से आकर्षित लोहे के खण्ड की तरह उसी ओर और दत्तचित्त होकर देखने लगा। कुछ क्षण के बाद वह तोता उडकर गया और लौटते समय वह चाेंच में एक तिनके जैसा कुछ दबाकर लाया। इसके बाद उसने बारी-बारी से तालाब के पानी में भिगोकर उस मूर्च्छित तोते की आँखों एवं मुख पर छिडकने-सा प्रयास लगा। इस दृश्य को मेरे अलावा और पक्षी भी विना देखे रह नहीं सके। मैं इधर बॉलकनी के इस किनारे से उस किनारे तक बैचेनी से घायल तोते की अवस्था को देखने की उत्कण्ठा में अपने पास रखी चाय को भी उठा नहीं पाया। शायद मुझे भी प्रकृति चमत्कार के प्रति आशा थी। मेरे मन में जबरर्दस्त जिज्ञासा थी कि वो तोता घायल था अथवा बीमार था? तो दूसरा तोता तिनके जैसा लाया वह क्या था और उसे वह लाया कहाँ से? साथ ही जिस प्रकार वह उस घायल की चिकित्सा कर रहा था उसे वह प्रेरणा कैसे प्राप्त हुई? ऐसी ही अनेक विचारधारा की ऊहापोह की डोरी से बँधा हुआ मैं तब एकाएक ताली बजा उठा जब मैंने देखा कि घायल तोता उठकर उडने का प्रयास कर रहा है। अब अँधेरा घना-सा होने लगा था ,सभी पक्षी अपने आवास में जाने लगे थे। बगुला,कबूतर और न जाने कितने ही पक्षियों का दल उडान भरकर लौटने लगा था। कुछ प्रयासों के बाद उस अस्वस्थ्य तोता ने फिर से ऊँची उडान भरी।मेरी कई जिज्ञासा का समाधान हुआ ही नहीं किन्तु चंद्रमा के उदय होने के साथ ही उस मूर्च्छित तोते के जीवन में चेतना-प्रकाश का विकास हुआ और एक बार फिर मैं प्रकृति के इस नियमबद्ध प्राणिजगत के ज्ञानवर्धक-प्रेरक प्रसंग से उठे प्रश्नों से घिरा हुआ अव्यक्त प्रकृति के प्रति नतमस्तक हो गया।