‘प्रकृति से सीख’
मैं वसंत का बहार हूँ ;
मेरा आस्तित्व बस कुछ दिनों का है ..
फिर भी ;
जीवनकाल में अनेक झाँझावतो को सहता..
सुरम्य चहुदिश में अक़ेला तना हुआ ..
भाग्य पर इठलाता…
सभी के मन को मोहता ..
किसान के परिश्रम को सिद्ध करता..
प्रेममयी वातावरण बिखेरता..
सकारात्मकता से पला हुआ ..
काश! इतना ही इंसान भी सीख लें,
भविष्य की चिंता के सिवाय, वर्तमान को जी ले ।
— विवेक मिश्रा