प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
हम धरा के दास बारहमासी l
सेवा करे हम अच्छी खासी ll
स्वच्छ हवा, जल, हरियाली l
करें है, जीवनी रंग रंगीली ll
हमें जगाए सुबह की लाली l
हमें सुलाए संध्या की लाली ll
सृष्टी संग, स्वतंत्र सहवासी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
फल फूल सब्जी और खेती l
हमारी माता यह धरती रेती ll
हमसे महनत , पसीना लेती l
हमें सुंदर स्वस्थ जीवन देती ll
वन को पूजे हम वनवासी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
सुनहरी धूप हमे तपाये है l
कठोर श्रम हमसे कराए है ll
उषा, संध्या, निशा निराली l
सुखो से, अवगत कराए है ll
जीवन सेहत अच्छी खासी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
हमारा दुखमय जीवन होता l
कोई जो धरोवर छीन लेता ll
जब प्रकृती आपदायें आती l
कहीं से कोई मदद न आती ll
यही है हमारी जीवन उदासी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
बिमारी हमें सदा दुखदाई l
पैसो बिन, न अस्पताल, न दवाई ll
जड़ी बूटी बनस्पति मसाले l
इनमे से ही दवा है बनाई ll
ये हमारी दुर्दशा व बेवसी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
बड़ी बिमारी, हमे ले ही जाए l
तड़पाते तड़पाते प्रभु ले जाए ll
महँगी दवाई ना हमरी हिम्मत l
महँगा इलाज कैसे कौन कराए ll
लोग हमें समझे, नरकवासी ll
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
पढाई लिखाई हमसे पराई l
बुद्धि हमसे सदा हरजाई ll
काला अक्षर भेस बराबर l
कहावत जीवन में छाई ll
हमे ना पता अस्सी छियासी l
प्रकृति भाषी, हम आदिवासी l
पृथ्वी के हम मूल निवासी ll
अरविन्द व्यास “प्यास”