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12 Jun 2018 · 1 min read

प्रकृति पिङा

धैर्य मेरा बिखर गया,
ना जाने कब, कहां
किधर गया।
टूट गया वचन मेरा,
अहिंसा कि राह ,अब हिंसा में बदल गया,
अहिंसात्मक ना जाने
अब, कहां गया
टूट गया धीरज मेरा,
सत्य असत्य का पता नहीं,
मिथ्या कि नगर है,
ना जाने खो गया कहां,
जिगर मेरा
लाल रंग अब प्यारा नहीं,
लगता खतरनाक है।
तलवार कि जरूरत क्या,
यहां “वाणी” हि “कटार” है।
बदल गयी सुरत मेरी,
देखो, मेरे लाडले हि वैरी बने।
अमृत नहीं कोख में मेरे,
अब तो यहां विष हि विष भरे।

Language: Hindi
476 Views
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