प्रकृति ने ही हमें दिया , जल जैसा उपहार,
प्रकृति ने ही हमें दिया,जल जैसा उपहार,
हम हरियाली काट कर,मिटा रहे श्रृंगार
आसमान को ताकते , बेबस से ये नैन
गर्मी से झुलसा बदन , खोया मन का चैन
नदियों के इस देश में , प्यासी सी अब प्यास
बड़ी दरारे अब लिए , दिखती धरा उदास
अब आँखों की भीगती , नहीं दर्द से कोर
नफरत लालच स्वार्थ के, इसमें बैठे चोर
डॉ अर्चना गुप्ता