प्रकृति तू प्राण है।
प्रकृति तू महान है, प्रकृति तू प्राण है।
जड़ चेतन है पुत्र तेरे मां, तू जननी इनकी महान है।
प्रकृति तू प्राण है।
पंचतत्व तुझसे ही है मां, तुझसे ही यह देह बनी।
तेरे सुरस सार से ही मां, जड से चेतन देह बनी।
सुरभित् सुंदर सुखद ममत्व से, तू करती सबका त्राण है।
तेरी गोद में जन्में है मां, तूने ही हमें सम्हाला है।
तू है नियति नटी सी अद्भुत, तेरे रूप हजार है।।
शीतल मंद सुगंध पवन से, तू देती सबको प्राण है।
प्रकृति तू महान है।
प्रकृति तू प्राण है।
सूर्य चंद्र युग मुकुट तेरे मां, करधनि रत्नाकर है।
नीलाम्बर है केश तेरे मां, हरित तट परिधान है।
षट्ऋतुओ का विविध हर्षयुत, तू देती वरदान है।
भांति-भांति के रत्न से तूने, जग को अर्थ दिया है।
औषधि तेरी अमृत सी मां, तू खनिजों की खान है।
प्रकृति तू महान है।
प्रकृति तू प्राण है।
मानवता है जन्मी तुझसे, तूने ही पाला-पोसा है।
तेरी स्नेह रुपी धूरी पे, नवनिर्माण किये हमनें।
तुझसे ही खिलवाड़ किया, तुझको दुख है दिया हमने।
प्रदूषण सा विष देकर के मां, हमनें तुझको कष्ट दिए।
अब तुमको हम कष्ट न देंगे, यह हम सबका अभियान है।
तेरी सुरक्षा निश्चित करना , हम सबका यह अभिमान है।
क्षमामयी ऐ प्रकृति माता, यह प्रण हम सबके प्राण है।
प्रकृति तू महान है।
प्रकृति तू प्राण है।
प्रकृति हम सबकी माता तुल्य है यदि यह प्रकृति न होती तो हम सभी के जीवन की कल्पना करना ही असंभव होता ।यह प्रकृति ही है जो जीवन के साथ साथ सभी प्रकार के संसाधन और अनुकूल वातावरण प्रदान करती है जिन सभी सुविधाओं की बदौलत हम बड़े होते हैं आगे बढ़ते हैं ।
यह प्रकृति हमारे लिए इतना कुछ करती है और हम मानव अपने स्वार्थी स्वभाव के कारण प्रकृति को कष्ट देते हैं।
हमारा यह दायित्व है कि हम प्रकृति की रक्षा करे एवं इसे प्रदूषण मुक्त करने में अपना सहयोग प्रदान करे।
मै अपनी यह कविता प्रकृति को समर्पित करता हूं साथ ही आप सभी से यह निवेदन करता हू की प्रकृति की सुरक्षा कमे अपना योगदान अवश्य देवें।
जय हिन्द, जय भारत साथियों।
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